Sunday, September 12, 2010

Shitla Mata History!!! (Never seen before on Internet)

वागड़ प्रदेश के सुविख्यात देव मंदिरों में शीतला देवी मंदिर गलियाकोट,विजवा माता का मंदिर, आशापुरजी और त्रिपुरा सुंदरी (तलवाडा) के मंदिर की प्रतिमाए प्रमुख है | शीतला माता की प्रतिमा स्वयंभू व श्वेत (white) पत्थर की बनी हुई है, जो लगभग १३ फीट लम्बी है | देवी के बालो व चोटी का गढ़न, हाथो में कंगन स्पष्ट रूप से दिखाई देते है | शीतला माता के शरीर का आधे से अधिक भाग ज़मीन में है देवी का यह अनूठा स्वरूप देखकर आश्चार्य होता है |

मंदिर में किसी भी प्रकार का शिलाभिलेख प्राप्त न होने से इस मंदिर के निर्माण काल के विषय में निश्चित नहीं कहा जा सकता | निज मंदिर के बाहर कुए की ओर जमीन में गड़े हुए दो विशाल प्रस्तर खंड है, जिन पर सूर्य-चन्द्र की आकृति उत्कीर्ण की गई है, निचे कुछ लेख भी लिखा गया है, किन्तु प्रायः ये अस्पष्ट है यह कहा जाता है कि गलियाकोट का प्राचीन दुर्ग तत्कालीन डूंगरपुर के वंशजो के अधीन था |  ग्राम इसे दुर्ग में था उस समय यह सारा क्षेत्र घने जंगलो से आच्छादित था, इस घने बन में " माँ शीतला" स्वयं प्रकट हुई  इसकी महत्ता तत्कालीन राजा को ज्ञात हुई, जिससे उन्होंने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया | आज भी इस देवी के मंदिर की संपूर्ण देखभाल , सुरक्षा व मंदिर वयवस्था डूंगरपुर राज-वंश के अधीन है |
स्वयंभू देवी शीतला की घटना जो इस जगह के लोगो में दन्त कथा के रूप में प्रचलित है, वो इस प्रकार है :
पावागढ़ (गुजरात) में ( प्रतिहार वंश ) पत्तईसिंह नाम का राजा था, तत्कालीन राजमहिशिया नवरात्रि के उत्सव पर प्रायः नृत्य किया करती थी | इन औरतों के साथ गरबा नृत्य में "माँ भगवती" सुंदर औरत का रूप धारण कर नवरात्री के नवो दिन गरबा खेलने प्रायः आती रहती थी | नवरात्री के आयोजन में ढोल मृदंग-मंजीरे बजाने वाले व्यक्ति को इस सुंदर औरत को देखकर आश्चर्य हुआ कि यह रूपवाली स्त्री कोन है? इस व्यक्ति ने जाकर राजा पत्तईसिंह को कहा, " राजन एक अत्यंत रूपवती स्त्री प्रायः खेलने आती है, जिसका सोंद्रय और नृत्य देखने योग्य है | यह रूपवती स्त्री कौन है ? कहा से आती है ? यह ज्ञात नहीं है, राजा इस रूपवती स्त्री का सोंद्रय और नृत्य देखने के प्रयोजन से गरबा आयोजन स्थल पर उपस्थित हुए जब गरबा का आयोजन प्रारंभ हुआ, उसमे अत्यंत रूपवती स्त्री को देखकर राजा को आश्चार्य हुआ उसके सोंदर्य से प्रभावित होकर राजा ने उसकी साडी का पल्ला पकडे हुए उसे अपने राज महल में ले जाने कि चेष्टा की |
"माँ" ने असली रूप में प्रकट होकर वरदान माँगने को कहा, किन्तु राजा ने वरदान से इनकार कर महलों में आने का आग्रह किया राजा की इस प्रतिकिर्या-दुर्भावना को देखकर "माँ" ने राजा को श्राप दिया - " तेरे राज्य पावागढ़ का पतन होगा, मैं तुम्हारे इस परिक्षेत्र में नहीं रहूंगी ! " यह कहकर "माँ" अदृश्य हो गई और राजस्थान राज्य के डूंगरपुर जिले में माही तट पर स्थित गलियाकोट नामक ग़ाव के पश्चिम की ओर "माँ" ने अपना स्वरूप प्रकट किया |
देवी के मंदिर में देवी की मूर्ति जमीन से बहार ३ फीट निकली हुई हे, इसका शेष भाग जमीन के भीतर है सम्पूर्ण मूर्ति लगभग १३ फीट से भी ज्यादा लंबी है |
"माँ शीतला" की यह प्रतिमा स्वयं इस स्थल पर कैसे  प्रकट हुई ? इस गटना की कहानी भी अनोखी है यह माना जाता है कि वर्त्तमान में जहा "माँ" भगवती का स्थल है, वहा पूर्व में घना जंगल था, जिसमे शेर, चीते आदि हिंसक पशु निवास करते थे | आसपास कोई बस्ती नहीं थी | इस जंगल में ग्वाले अपने गायो को चराने आया करते थे | एक ग्वाला भील जाति का था | शाम को ग्वाला जब गायो को लेकर घर पहुचता और गाय का दूध निकलता तब, उसे यह संदेह हुआ कि गाय इतना कम दूध क्यों देने लगी है ? इस शंका के समाधान हेतु दुसरे दिन से उस श्वेत गाय कि पूरी रखवाली हेतु गाय के पीछे-पीछे ग्वाला रवाना हुआ  | गाय सीधे झाड़ी में घुसकर "माँ" कि प्रतिमा पर दूध कि धार छोड़ रही थी |  यह देखकर ग्वाले को आश्चर्य हुआ, शंका के मारे ग्वाले ने दूध कि धार पड़ी मिटटी को खोद दिया, थोड़ी गहराई तक पुह्चा ही था कि एक पत्थर कि बनी प्रतिमा सामने आई, जिसके एक हाथ में खड्ग और दुसरे हाथ में खप्पर ले रखा था , यह देखकर ग्वाले को और आश्चर्य हुआ इस प्रतिमा को देवी मानकर पूजा करने का इरादा करता हुआ घर लौटा, रात को जब ग्वाले के सपने में "माँ" ने कहा कि मैं पावागढ़ से निराश होकर यहाँ आई हु, मेरा मुख अग्नि-कोण पावागढ़ कि ओर है मैं प्रसन्न हु आज से तू मेरा पुजारी रहेगा | आज भी शीतला देवी के पुजारी मकवाने भील जाति के है |
"माँ" के इस रहस्य कि घटना तत्कालीन राजा के सामने आई राजा स्वयं इस स्थल पर पहुचे
इस प्रतिमा को देखकर राजा ने उस स्थल पर साधारण झोपड़ी बनाकर दैनिक पूजन करने की व्यवस्था कराई तत्पश्चात डूंगरपुर के राजवंश ने इस देवी को अपने कुल देवी मानकर अपने
अधीनस्थ कर इसके मंदिर समूह का निर्माण कराया |
इस प्रकार गलियाकोट तीर्थ शीतला माता  का मंदिर गुजरात राज्य का विख्यात धार्मिक स्थल "पावागढ़" से सम्बन्ध रखता है |  यहाँ तक कि गुजरात के गाये जाने वाले लोकगीत "गरबा" में पावागढ़ व गलियाकोट शीतला देवी से सम्बंधित अनेक लोकगीत गरबा नृत्य में गाये जाते है | वर्त्तमान में शीतला माता का यह तीर्थस्थल महारावल श्री लक्ष्मंसिन्ह्जी डूंगरपुर द्वारा स्थापित "देवस्थान निधि" उदयविलास के अंतर्गत है |
 नवरात्री महोत्सव कि अष्टमी पर यहाँ विशाल मेले का रूप हो जाता है | इस अवसर पर शीतला माता कि प्रतिमा को सोने चांदी के आभुषानो द्वारा श्रृंगार किया जात है | शीतला देवी के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ ओरी-माताजी, मोतोझरा, अछबड़ा आदि देवी प्रतिमाओ के मंदिर भी है , जहा सेकड़ो यात्री दर्शन का लाभ लेते है |