Monday, April 23, 2012

History of Fakhri Masjid, Mohammediyah


मस्जिद की ज़मीन का मुहर्त  1 सफ़र 1400 ( 20 दिसम्बर 1979 ) को आका मौला सय्येदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहेब (त.उ.श.) के हाथो " किबला " की जगह पर ही सीमेंट व रेत लगा कर इट रखी, आपने यह किबले की नीव  बड़ी खुशी और उमंग के साथ रखीं | आपने यह मुहरत, मस्जिद की ज़मीन पर ही दोपहर की नमाज़ अदा करके किया | 10 रमज़ान 1402 हिजरी को मस्जिद का काम प्रारम्भ हुआ |

उस समय यह ज़मीन एक पहाड़ी के रूप में थी | इस पहाड़ी को ऊपर से काटनी पड़ी , मस्जीद की नीव बहुत गहरी खोदी गयी और इस नीव के पुरे कार्य को एक महिला ( मलनी मरयम बाई ) ने अंजाम दिया |

मस्जीद की ही ज़मीन पर एक ट्यूब वेल खोदा गया | 10 रमजान  1402 को इस कुँए को खोदने का कार्य शुरू किया गया |मोहम्मेदिया की भूमि बंजर भूमि की तरह थी किन्तु अब नहीं, मोहम्मेदिया के चारों तरफ करीब 3 किलोमीटर तक कोई कुआं नहीं था, क्योकि पहले भी कई किसानों ने कुवें खुदे थे, पर सभी को असफलता ही हाथ लगी थी |

क्योकि यह कुआं तो मस्जीद के लिए था और सय्येदना साहेब की रज़ा मुबारक से प्रारंभ किया गया था , अतः एक करिश्मा साबित हुआ,जब कुआं खोदने के लिए मशीन जोड़ा गया और कार्य प्रारंभ किया गया उस समय श्री अली भाई इज्ज़ी,बड़े कार्यकर्ता , बड़े आत्म विश्वाश के साथ उस मशीन के पास यह वचन लिए बैठ गए कि आखिर पानी को तो आना ही हे, मगर जब तक नहीं आएगा में यही बैठा रहूँगा |
कई महीने कि कड़ी धुप और तेज़ गर्मी और रमजान का रोज़ा लिए हुए आप वहीं धुप में बैठे रहे यहाँ तक कि ज़ौहर कि नमाज़ भी आपने वहीं अदा की, आखिर कुछ ही फीट की गहराई पर पानी के बड़े फुव्वारे निकले , यह देख सभी कार्यकर्ता खुशी की ईद मानाने लगे और अपने कार्य में बराबर जुटे रहे, यह करिश्मा देख कर दुश्मनी करने वाले लोगो को मुह की खानी पड़ी, जो यह कहकर कार्यकर्ताओ की मज़ाक करते थे की कभी मरुस्थल में किसी को कुआं खोदते देखा हे?

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Narrated by:  Marhum Ibrahim bhai Chikhly.